मैं-- मालिन मन-बगिया की
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मैं इक्कीसवीं सदी की
शक्ति हूँ
ऊर्जा हूँ मैं
अभिव्यक्ति हूँ
आज हर ओर कर रही
मैं कुशल-नेतृत्व
किंचित समस्याओं से नहीं होती व्यथित
मजाल क्या अश्रुओं की
जो ढुलक जाएँ आँखों से,
तनिक कटु बातों से
खुद को मैं पहचानती हूँ
दुनिया चलाना जानती हूँ
आज हमारे आनंद-गान से
रूढ़ियाँ सभी हलकान हैं
गुन रहा हमारी हर बात को
यह समाज जो पुरुष-प्रधान है
रुकुंगी नहीं मैं,
डिगूंगी नहीं
दुश्वारियां होंगी जहां
मैं डटूंगी वहीँ |
– प्रियांका त्रिपाठी ‘दीक्षा’
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