- 29 Posts
- 13 Comments
कल देश में दो बड़ी घटनाएं एक साथ घटित हुईं।
पहली – पंजाब के गुरदासपुर में आतंकी हमला।
दूसरी- पूर्व राष्ट्रपति, महान वैज्ञानिक एवं भारत-रत्न डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का देहावसान।
दिन के अलग-अलग प्रहर में घटी इन दोनों घटनाओं में प्रत्यक्ष रूप से कोई समानता नहीं है।
परन्तु अल्पज्ञानियों को भी अच्छाई एवं बुराई तथा ज़न्नत एवं जहन्नुम के बीच का फ़र्क समझाने के लिए ये घटनाएं पर्याप्त हैं।
एकओर जहाँ लक्ष्यहीन, आदर्शों से भटके एवं अपनी अल्पबुद्धि के कारण मज़हब की तुच्छ व्याख्या करनेवाले आतंकी मानवता का कत्लेआम करते हुए खुद भी बचते-छिपते कुत्ते-बिल्लियों की मौत मारे गए।
वहीँ दूसरी ओर अभावों में भी अपने लक्ष्य को संकल्पित रहे, देश के सर्वोच्च पद पर रहकर भी आडम्बर-रहित सादा-जीवन जीने वाले तथा देश और मानवता की सेवा-व्रत में ताउम्र अविवाहित रहकर भी डा.कलाम अपने पीछे हम जैसे करोड़ों शोकाकुल भारतीयों का परिवार छोड़ गए।
ये दोनों घटनाएं उन तमाम तर्क-सम्पन्न लोगों को भी एक गंभीर सन्देश देती हैं जो कि आतंकवाद को सीधा धर्म अथवा मज़हब से जोड़ते हैं।
सन्देश यह है — ” हर आतंकवादी मुस्लिम-परिवार का सदस्य हो सकता है ; क्योंकि अधिक जनसंख्या एवं अशिक्षा मुस्लिम-परिवारों में होने की वजह से आदर्शों से भटकाव की गुंजाइश सबसे ज़्यादा इन्हीं परिवारों में होती है।
परन्तु हर मुसलमान आतंकवादी नहीं होता। ”
हकीक़त यह है कि डा.कलाम जैसे व्यक्तित्व का मज़हब के आधार पर परोक्ष रूप से वर्गीकरण करते हुए मेरी लेखनी भी कांप गयी।
क्योंकि डा.कलाम जैसी शख्सियत सदियों में एक बार ही जन्म लेती है। वह किसी भी नाम से किसी भी धर्म-जाति में जन्म ले सकती है।
परन्तु ऐसी शख्सियत का उद्देश्य स्पष्ट होता है– “हर प्रकार से मानवता की रक्षा व मानवीय मूल्यों का प्रसार।।”
–‘दीक्षा’
Read Comments